दिलकशी देख कर इस ज़माने की,
हमे भी आरजू थी कुछ कर दिखने की,
मगर गम ऐ दिल तुम नाराज़ ना होना,
क्योंकि हमे तो आदत है बस यूं ही मुस्कुराने की,
तुमने कभी कोशिश ही नहीं की हमें मनाने की,
और जिद्द हमने भी कर ली तुमसे रूठ जाने की,
और रिश्तों के मायनो को तुम क्या जानो,
क्योंकि तुम्हे तो आदत रही बस मुझे यूं ही आजमाने की,
तेरी यादों को कर चुका हूँ इस दिल से रुखसत,
मुझे भी चाहत नहीं है रेत पर अपना घर बसाने की |
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