सुना होगा बहुत तुमने,
कहीं आँखों की रिम झिम का,
कहीं पलकों की शबनम का,
पढ़ा होगा बहुत तुमने,
कहीं लहजे की बारिश का,
कहीं सागर के आंसू का,
मगर तुमने कभी हमदम,
कहीं देखा ? कहीं पढ़ा ?
किसी तहरीर के आंसू,
मुझे तेरी जुदाई ने,
ये मिराज बक्शी है,
के मैं जो लफ्जो में लिखता हूँ,
वो सारे लफ्ज रोते है,
के मै जो हर्फ़ बुनता हूँ,
वो सारे बातें करते हैं,
मेरे संग इस जुदाई में,
मेरे अल्फाज भी मरते हैं !!
कहीं पलकों की शबनम का,
पढ़ा होगा बहुत तुमने,
कहीं लहजे की बारिश का,
कहीं सागर के आंसू का,
मगर तुमने कभी हमदम,
कहीं देखा ? कहीं पढ़ा ?
किसी तहरीर के आंसू,
मुझे तेरी जुदाई ने,
ये मिराज बक्शी है,
के मैं जो लफ्जो में लिखता हूँ,
वो सारे लफ्ज रोते है,
के मै जो हर्फ़ बुनता हूँ,
वो सारे बातें करते हैं,
मेरे संग इस जुदाई में,
मेरे अल्फाज भी मरते हैं !!
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