Wednesday, October 6, 2010

मैं अब जी कर क्या करूँ

मुझे ज़िन्दगी की तलब नहीं,
मुझे ज़िन्दगी से गिला नहीं,
जिसे पा कर खो दिया,
वो नसीब था मिला नहीं,
जिसे चाहा वो बदल गया,
जिसे माँगा वो बिछड़ गया,
मैं अब जी कर क्या करूँ,
जब ज़िन्दगी में सिला नहीं,
जिस वफ़ा की आस में जल गया,
वो ख़ुशी का दीप जला नहीं
मेरा मेहबूब मुझे मिला नहीं......

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