Friday, December 31, 2010

आखरी ये ख़त एक बेवफ़ा के नाम है.......

आखरी बार आखरी ख़त मैंने लिखा उसे,
देती है मेरी मोहब्बत आखरी तोहफा उसे,
याद रखे या भुला दे मुझे परवाह नहीं,
याद करके भूल जाऊं उसको मैं ऐसा नहीं,
बेवफ़ा की बेवफाई साथ मेरे जाएगी,
और जब उठेगा जनाज़ा मेरा तो आवाजें आएंगे
आ देख ले ज़िन्दगी की ये आखरी ये शाम है,
आखरी ये ख़त एक बेवफ़ा के नाम है |


Tuesday, November 30, 2010

मेरे इश्क का फ़साना.......

मुझ से वफ़ा निभाना तेरे बस में नहीं जाना,
दो फूल भी सजाने मेरी क़ब्र पर ना आना,
मेरे इश्क की हकीकत तुमने कभी ना समझी,
मेरे बाद याद करना मेरे इश्क का फ़साना,












दिल में बसाते हैं सब, तुम्हें रूह  में था बसाया,
तुम ने ही बदल डाला मेरी रूह का ठिकाना,
एक इल्तेजा है तुम से है छोटी सी गुजारिश,
सब कुछ ही याद रखना बस मुझ को भूल जाना,
सिला मांगता हूँ उन से जो खुद ही हैं सवाली,
मुझे क्या सिला देगा ये बेरहम ज़माना |

Monday, November 15, 2010


















क्यों रखूँ मैं अब अपनी कलम में स्याही,
जब कोई अरमान दिल में मचलता ही नहीं,
न जाने क्यों सभी शक़ करते हैं मुझ पर,
जब कोई सुखा फूल मेरी किताब में मिलता ही नहीं,
कशिश तो बहुत है मेरे प्यार में,
मगर क्या करूँ एक पत्थर दिल पिघलता ही नहीं,
अगर खुदा मिले तो उस से अपना प्यार माँगूंगा,
मगर सुना है वो मरने से पहले मिलता ही नहीं |

Friday, November 12, 2010

जनाज़ा....

तेरे बिना ये दिल नहीं मानेगा,
तुझसे जुदा रहूँ ये दिल नहीं चाहेगा,
तेरे साथ बीते हर पल की कसम,
अब आ जाओ वरना मेरा जनाज़ा जायेगा |

बेवफा होना ज़रूरी हो गया है....

मोहब्बत से रिहा होना ज़रूरी हो गया है,
मेरा तुझसे जुदा होना ज़रूरी हो गया है,
वफ़ा के तजुर्बे करते हुए तो उम्र गुजरी,
ज़रा सा बेवफा होना ज़रूरी हो गया है,
मेरी आवाज़ तन्हाई में मरती जा रही है,
किसी का हमनवां होना ज़रूरी हो गया है,
भंवर में है कई बरसों से अपनी कश्ती-ऐ-जान,
किसी का नाखुदा होना ज़रूरी हो गया है |

रात जुदाई की.....

अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की,
तुम क्या समझो तुम क्या जानो बात मेरी तन्हाई की,
कौन स्याही घोल रहा था वक़्त के बहते दरिया में,
मैंने आँख झुकी देखी है आज किसी हरज़ाई की,
वस्ल की रात ना जाने क्यों इस्रार था उनको जाने पर,
वक़्त से पहले डूब गए तारों ने बड़ी रुसवाई की,
उड़ते-उड़ते आकाश का पंछी दूर उल्फत में डूब गया,
रोते-रोते बैठ गयी आवाज़ किसी सौदाई की |

औरत है ज़हर की पुड़िया.....

जवान हो या बुढ़िया, या नन्ही सी गुड़िया,
कुछ भी हो, औरत है ज़हर की पुड़िया,
मरे पिस्तोल से ना मरे तलवार से,
मर्द को गुलाम बनाये बड़े प्यार से,
कभी इकरार से तो कभी इनकार से,
नैनो के श्रींगार से तो कजरे की धार से,
जवान हो या बुढ़िया, या नन्ही सी गुड़िया,
कुछ भी हो, औरत है ज़हर की पुड़िया,
चलने में तेज़ जैसे घड़ियाल की,
लाये ये खबर निकाल के पाताल की,
कच्ची है कान की तो झूठी है जुबान की,
काली हो या गोरी ये बर्बादी है इंसान की,
जवान हो या बुढ़िया, या नन्ही सी गुड़िया,
कुछ भी हो, औरत है ज़हर की पुड़िया,
चार आने झगडा,आठ आने लफ्ड़ा,
झूठ बोले बारह आना,सोलह आना लफड़ा,
हो नहीं सकता ये काम भगवान का,
नक्शा जरूर होगा ये तो किसी शैतान का,
जवान हो या बुढ़िया, या हो नन्ही सी गुड़िया,
कुछ भी हो, औरत है ज़हर की पुड़िया |


AUTHOR - UNKNOWN

Saturday, November 6, 2010

अज़ीयत से मुझको भुलाया होगा.....

कितनी अज़ीयत से उसने मुझको भुलाया होगा,
मेरी यादों ने उसको ख़ूब रुलाया होगा,
बात बे बात यूंही आँख जो उसकी भरी होगी,
उसने चेहरे को बाजुओं में छुपाया होगा,
सोचा होगा उसने दिन में कई बार मुझको,
नाम रेत पर लिख कर मेरा मिटाया होगा,
जहाँ मेरा ज़िक्र सुना होगा उसने किसी से,
उसकी आँखों में आंसू तो आया होगा,
होके निढाल मेरी यादों से तुने जाना,
मेरी तस्वीर पर सर टिकाया होगा,
रात के भीगने तक नींद नहीं आई होगी तुझे,
पूछा होगा जो किसी ने तेरी हालत का सबब,
तुने बातों में उसे ख़ूब छुपाया होगा |

मेरी मोहब्बत हो तुम.......

भीगे गुलाब जैसी खुबसूरत हो तुम,
जो भी हो जाना मेरी मोहब्बत हो तुम,
ख्वाबों में आ के मीठे सपने दिखाके,
मुझे आने वाले सुनहरे लम्हे दिखाके,
क्या कोई परी की जैसी शरारत हो तुम ?
जो भी हो जाना मेरी मोहब्बत हो तुम ||

यादों में लिख गए अशारो जैसे,
प्यार में सजाये हुए ग़ज़लों जैसे,
क्या लिखें जो सुनहरी ख्यालात हो तुम,
जो भी हो जाना मेरी मोहब्बत हो तुम,
तेरी बातों में वो चासनी हाय रब्बा,
दिल मेरा उनमें बस डूब जाये रब्बा,
क्या मेरे लिए बस एक बरसात हो तुम,
जो भी हो जाना मेरी मोहब्बत हो तुम ||

चेहरे से जो ज़ाहिर है वो छुपाऊँ कैसे ?
तुझसे कितनी मोहब्बत है ये बताऊँ कैसे ?
क्या मेरे दिल की ही सिर्फ रियासत हो तुम ?
जो भी हो जाना मेरी मोहब्बत हो तुम ||

भाता नहीं कोई चेहरा बस तेरे सिवा,
कोई नहीं दीवाना तेरा एक मेरे सिवा,
क्या फुर्सत से तराशी गयी मूरत हो तुम,
जो भी हो जाना मेरी मोहब्बत हो तुम ||

जहाँ भी जाऊं जिधर भी जाऊं मैं,
महफिलों में खुद को तन्हा पाऊँ मैं,
क्या मेरी ज़िन्दगी की अब जरुरत हो तुम ?
जो भी हो जाना मेरी मोहब्बत हो तुम ||

जो भटक जाऊं कहीं आ जाना राहों में,
ले जाओ मंजिल पे भर के बाँहों में,
क्या मेरी हर जुस्तजू-ऐ-ताक़त हो तुम ?
जो भी हो जाना मेरी मोहब्बत हो तुम ||

ज़ेह्नसीब हूँ मैं जो पाया तुझ को,
हर सू हर लम्हा सिर्फ चाहा तुझको,
क्या खुदा की मुझ पे की रहमत हो तुम ?
जो भी हो जाना मेरी मोहब्बत हो तुम ||

और क्या कहू तुमसे जान-ऐ-तमन्ना,
तुम ही हो सिर्फ मेरी दिल-ऐ-तमन्ना,
क्या ज़िन्दगी से लगायी हुई शर्त हो तुम ?
जो भी हो जाना मेरी मोहब्बत हो तुम ||

जो करी मुजाहिद नहीं वो इबादत हो तुम,
हाँ मेरी जाना मेरी मोहब्बत हो तुम
मेरी मोहब्बत हो तुम, मेरी मोहब्बत हो तुम ||

Wednesday, November 3, 2010

अगर वो मेहरबाँ होती....

अगर वो मेहरबाँ होती तो मेरी आँखें ना झिलमिल होती,
ना मेरे दिल की वादी में खिज़ां का काफ़िला रुकता,
अगर वो मेहरबाँ होती,मेरी बेनूर आँखों में सितारे कैद कर देती,
मेरी ज़ख़्मी हथेली पर वो एक फूल रख़ देती, 
मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर,
वो ये कहती......
मोहब्बत रौशनी है,रंग है,खुशबू है,सितारा है,
कसम मुझको मोहब्बत की मुझे तू सबसे प्यारा है,
मगर ऐसा वो तब कहती अगर वो मेहरबाँ होती |

हमे प्यार कीजिये.....

बस इतनी सी इनायत मुझ पर एक बार कीजिये,
कभी आ के मेरे ज़ख्मों का दीदार कीजिये,
हो जाइये बेगाने आप शौक से सनम,
आपके हैं आपके रहेंगे ऐतबार कीजिये,
पढने वाले ही डर जाएँ देख कर इसे,
किताब-ऐ-दिल को ना इतना दागदार कीजिये,
ना मजबूर कीजिये,के मैं उनको भूल जाऊं,
मुझे मेरी वफ़ाओ का ना गुनहगार कीजिये,
इन जलते दीयों को देख कर ना मुस्कुराइए,
ज़रा हवाओं के चलने का इंतज़ार कीजिये,
करना है इश्क आपसे करते रहेंगे हम,
जो भी करना है आपको मेरे सरकार कीजिये,
फिर सपनो का आशियाँ बना लिया है मैंने,
फिर आँधियों को आप ख़बरदार कीजिये,
हमे ना दिखाइए ये दौलत ये शोहरत,
हम प्यार के भूखे हैं हमे प्यार कीजिये |

अब तेरी बातें दिल में उतरती नही.....

क्या करूँ अब कोई भी अच्छा नहीं लगता मुझे,
तू भी पहले की तरह अपना नही लगता मुझे,
अब तेरी बातें दिल में उतरती ही नही,
तू वो ही है पर तेरा लहजा नही लगता मुझे,
तू तो अब बदन से साथ चलती है मेरे,
तेरे शानों पे तेरा चेहरा नहीं लगता मुझे,
तू कभी तकसीम करती थी हवाएं चारसू,
अब तेरे पास एक झोंका नहीं लगता मुझे,
अब लिफाफे से तेरी खुशबू नहीं आती मुझे,
ख़त भी तेरे हाथ का लिखा नहीं लगता मुझे |

कहाँ से सीख ली तुमने, अदा मुझ को भुलाने की.....

कभी तो लौट कर आओ, मुझे बस इतना समझाओ,
कहाँ से सीख ली तुमने, अदा मुझे को भुलाने की ?
तुम्हें जो मुझसे शिकवा था, या कोई भी शिकायत थी
ज़हमत तो ज़रा सी थी, ना कोशिश की बताने की
भला यूं छोड़ कर अपना कोई, अपनों को जाता है ?
दुःख की बारिश में, जीवन भर रुलाता है ?
अभी भी रेत गीली है, अभी सब नक्श बाकि हैं
गए क़दमों पे लौट आओ, मुझे बस इतना समझाओ
कहाँ से सीख ली तुमने, अदा मुझ को भुलाने की ??

Thursday, October 21, 2010

दिल के हर दर्द की दवा ना ढूंढिए.......

दिल के हर दर्द की दवा ना ढूंढिए,
दिल के हर दर्द को हवा ना दीजिये,
ऐसे किसी खास दर्द के संग-संग,
क्यों ना जीना सीख लीजिये |

कुछ सवालों का कोई जवाब नहीं होता,
कुछ का जवाब ढूंढना अच्छा नहीं होता,
या उनके ज़िक्र से कोई फायदा नहीं होता,
इसलिए मन की गहराईयों  से उन्हें उतरने दीजिये,
दिल के हर दर्द की दवा ना ढूंढिए |

दिल की बात ना कहना बड़ा कठिन है,
बावले दिल पर भरोसा भी कठिन है,
आँखों में उभरे आंसू छिपाना कठिन है,
अपनों के लिए दर्द सहना भी कठिन है,
किन्तु क्या करें ?
शिकायत कहाँ, किससे, कितनी कीजिये ?
दिल के हर दर्द दवा ना ढूंढिए |

उम्मीद करते रहें कभी तो वो दिन आएगा,
मन में समेटे अंधेरों का समय मिटाएगा,
सूखे आंसुओं की लकीरें वो पोंछेगा,
और हवा की तरह उड़ना सिखाएगा,
तब ज़िन्दगी के हाथो ज़िन्दगी सौंप दीजिये,
दिल के हर दर्द की दवा ना ढूंढिए |

" ज़नाब " को नया शेर तो कहने दो.....

अभी मौत से डर लगता है, थोड़ी सांस और चलने दो,
है बर्फ सरीखा प्यार अभी, तुम इसको ना पिघलने दो,
बस यही दुआ है अपनी,ये साथ अपना बना रहे,
मैं तुमसे दूर ना जाऊं, तुम मुझको ना बिछड़ने दो,
जीवन नदिया की धारा है, कुछ निश्चित नहीं किनारा है,
पतवार बनो तुम नैय्या की, मुझको भी पार उतरने दो,
प्यार नहीं रहा तो गम कैसा, उसकी यादें तो जिंदा है,
बस लेकर मोहब्बत का नाम मुझे, दुःख-दर्द सभी का हरने दो,
महफ़िल है सूनी आज अगर, तो रौनक भी आ जाएगी,
चुप-चुप से बैठे " ज़नाब " को, तुम नया शेर तो कहने दो |

Monday, October 11, 2010

तेरी यादों को कर चुका हूँ दिल से रुखसत.....


दिलकशी देख कर इस ज़माने की,
हमे भी आरजू थी कुछ कर दिखने की,
मगर गम ऐ दिल तुम नाराज़ ना होना,
क्योंकि हमे तो आदत है बस यूं ही मुस्कुराने की,
तुमने कभी कोशिश ही नहीं की हमें मनाने की,
और जिद्द हमने भी कर ली तुमसे रूठ जाने की,
और रिश्तों के मायनो को तुम क्या जानो,
क्योंकि तुम्हे तो आदत रही बस मुझे यूं ही आजमाने की,
तेरी यादों को कर चुका हूँ इस दिल से रुखसत,
मुझे भी चाहत नहीं है रेत पर अपना घर बसाने की |

Wednesday, October 6, 2010

बाज़ी-ऐ-इश्क हारे यारों......

बाज़ी--इश्क कुछ इस तरह से हारे यारों,
ज़ख़्म पे ज़ख़्म लगे दिल पर हमारे यारों,
कोई तो ऐसा हो जो घाव पर मरहम रखे,
यूं तो दुश्मन ना बनो सारे के सारे यारों,
बज़्म में सिर को झुकाए हुए जो बैठे हैं,
इन को मत छेड़ो ये हैं इश्क के मारे यारों,
जिन में होते थे कभी मेहर--वफ़ा के मोती,
इन जी आँखों में सितम के हैं शरारे यारों,
दोस्त ही अपने जो करने लगे नजर--तोफां,
काम नहीं आते फिर कोई सहारे यारों,
संग गैरों ने जो मारे तो कोई दुःख ना हुआ,
मर गए तुम ने मगर फूल जो मारे यारों,
वो जो रहा दिल गीर तुम्हारी खातिर,
तुम ने क्या-क्या नहीं ताने उसे मारे यारों.....

मैं अब जी कर क्या करूँ

मुझे ज़िन्दगी की तलब नहीं,
मुझे ज़िन्दगी से गिला नहीं,
जिसे पा कर खो दिया,
वो नसीब था मिला नहीं,
जिसे चाहा वो बदल गया,
जिसे माँगा वो बिछड़ गया,
मैं अब जी कर क्या करूँ,
जब ज़िन्दगी में सिला नहीं,
जिस वफ़ा की आस में जल गया,
वो ख़ुशी का दीप जला नहीं
मेरा मेहबूब मुझे मिला नहीं......

Friday, September 24, 2010

मोहब्बत में इम्तिहान आ गया........

मोहब्बत में क्या इम्तिहान आ गया,
रोज हँसते हुए चेहरे को उदास बना दिया,
कभी लुटाते थे हम मोहब्बत यूंही,
आज उन्होंने हमे ही मोहब्बत में लुटा दिया

हो नहीं सकता.....

हो नहीं सकता मुझे तेरी याद ना आये,
भूल के भी तुझे भूलूँ वो एहसास ना आये,
तू भूले तो तेरी मर्ज़ी,
मैं भूलूँ तो अगली साँस ना आये..

याद आता है....

हर रात एक नाम याद आता है,
कभी सुबह कभी शाम याद आता है,
जब सोचता हूँ के कर लूँ दूसरी मोहब्बत,
फिर पहली मोहब्बत का अन्जाम याद आता है...

मेरा नहीं पराया था

मुझे खबर थी वो मेरा नहीं पराया था,
पर धडकनों ने उसी को ख़ुदा बनाया था,
मैं खवाब-ख्वाब जिसे ढूंढता फिरा बरसों,
वो अश्क-अश्क मेरी आँख में समाया था,
तेरा कसूर नहीं जान,मेरी तन्हाई,
ये रोग मैंने ही,खुद जान को लगाया था |

फिर याद आई वो.....

अब के यूँ दिल को सजा दी हमने,
उस की हर बात भुला दी हमने,
एक,एक फूल बहुत याद आया,
शाख़-ऐ-गुल जब वो जला दी हमने,
आज तक जिस पे वो शरमाते हैं,
बात वो कब की भुला दी हमने,
शाह-ऐ-जहाँ राख से आबाद हुआ,
आग जब दिल की बुझा दी हमने,

आज फिर याद बहुत आई वो,
आज फिर उसको दुआ दी हमने,
कोई तो बात है उसमें "जनाब"
हर ख़ुशी जिस पे लुटा दी हमने....

अपनी मोहब्बत का सहारा दे दे कोई......

मेरे सुकून को लौटा दे कोई,
इन लरजते होंठो से मुस्कुरा दे कोई,
बहुत दर्द समां रखा इस सीने में,
दवा बनकर इस दर्द को मिटा दे कोई,
मुझे भी मुस्कुराने की तमन्ना है बहुत,
इस ग़म के समुन्दर में खुशियाँ ला दे कोई,

तन्हा चलते-चलते अब थक गया हूँ मैं,
सफ़र के इस तन्हाई को आकर मिटा दे कोई,
जीने के लिए मेरे पास यादों के सिवा कुछ नहीं,
मरने के लिए अपनी मोहब्बत का सहारा दे दे कोई......

Thursday, September 23, 2010

दोस्ती करने का शौक.....

क्या खबर थी,मार देगा ज़िन्दगी करने का शौक,
मुझको तनहा कर गया है दोस्ती करने का शौक,
वो  मेरी औकात जुगनू के बराबर भी नहीं,
पर है सूरज से ज्यादा रोशनी करने का शौक,
जब से चूमा है जबीं ने आप की दहलीज़ को,
मेरे दिल में भर गया है बंदगी करने का शौक,
जाने किस बरसात की मकरूज़ हैं आँखें मेरी,
हो गया है बारिशों की पैरवी करने का शौक....

इस शहर के लोगों ने.....

आदत ही बना ली है इस शहर के लोगों ने,
अन्दाज बदल लेना, आवाज़ बदल लेना,
दुनिया की मोहब्बत में अतवार बदल लेना,
मौसम जो नया आये रफ़्तार बदल लेना,
अग्यार वही रखना एहबाब बदल लेना,
आदत ही बना ली है इस शहर के लोगों ने,
रास्ते में अगर मिलना नज़रों को झुका लेना,
आवाज़ अगर दूं तो कतरा के निकल जाना,
आर एक से जुदा रहना हर एक से खफा रहना हर एक से गिला करना
जाते हुए राही को मंजिल का पता दे कर रास्ते में रुला देना,
आदत ही बना ली है इस शहर के लोगों ने.....

हाथों की लकीरों से.....

अपने हाथों की लकीरों से मिटा दूं तुझको,
कैसे मुमकिन  है की मैं ऐसे दगा दूं तुझको,
सोचता हूँ मैं किसी पल भुला दूं तुझको,
अपनी यादों से किसी रोज़ मिटा दूं तुझको,
तू ना मिल पाए मुझे ऐसी दुआ दूं तुझको,
हौसला होता नहीं दगा-ऐ-वफ़ा दूं तुझको,
मरे दामन में अंधेरों के सिवा कुछ भी नहीं,
ये किसी रोज़....किसी रोज़ बता दूं तुझको,
ऐतबार-ऐ-दिल-ऐ-आवारा नहीं है मुझको,
इस धड़कन में भला कैसे कैसे बसा दूं तुझको,
आगसी लगती है सीने में शब्-ओ-रोज़ खलिश,
ये ना हो खुद भी जलूं और जला दूं तुझको......

काश........

हमारे तो हर अलफ़ाज़ में होता था प्यार,
काश तुम दो लफ्ज़ ही कह पाते,
बीच हमारे होती थी कितनी बातें,
काश तुम कुछ का मतलब भी समझ पाते,
तुम्हें बातों ही बातों में,
हर बात कह जाते,
किसी का तुम काश दर्द ही जान जाते,
कितने बहानों से किया इज़हार,
कही बस तुम इकरार ही कर पाते,
हम तो थे तैयार चलने को पूरी ज़िन्दगी,
काश तुम कभी दो कदम बढ़ाते !!!!

आंखे सच बोल जाती है....

ना जाने क्यो वो मुझसे मुस्कुरा कर मिलती है,
अंदर के सारे गुम छुपा कर मिलती है,
आंखे सच बोल जाती है शायद,
इसलिये आंखे झुका कर मिलती है......

अभी सोये हैं.....

उन्हें तो फुर्सत नहीं मिलने की हमसे,
और हमारा वक़्त गुजरता है उनकी फ़रियाद करके,
अगर आये वो मेरी मौत पर,
तो कह देना अभी सोये हैं हम तुम्हे याद करके |

मेरे हक में दुआ नही करते........

दर्द उठता है मगर आंह नही करते,
कौन कहता है के हम वफ़ा नहीं करते,
आखिर क्यूँ नहीं बदलती तकदीर मेरी,
क्या मेरे दोस्त मेरे हक में दुआ नही करते |

इस जुदाई में.....

सुना होगा बहुत तुमने,
कहीं आँखों की रिम झिम का,
कहीं पलकों की शबनम का,
पढ़ा होगा बहुत तुमने,
कहीं लहजे की बारिश का,
कहीं सागर के आंसू का,
मगर तुमने कभी हमदम,
कहीं देखा ? कहीं पढ़ा ?
किसी तहरीर के आंसू,
मुझे तेरी जुदाई ने,
ये मिराज बक्शी है,
के मैं जो लफ्जो में लिखता हूँ,
वो सारे लफ्ज रोते है,
के मै जो हर्फ़ बुनता हूँ,
वो सारे बातें करते हैं,
मेरे संग इस जुदाई में,
मेरे अल्फाज भी मरते हैं !!

हसीनो के मरने पर ताजमहल बनता है....

उन्होंने कभी अपना बनाया ही नहीं,
झूठा ही सही प्यार दिखाया ही नहीं,
गलतियाँ अपनी हम मान भी जाते,
पर क्या करे कसूर हमारा हमें बताया ही नही,
हजारों झोपड़ियाँ जलकर राख होती हैं,
तब जाकर कहीं एक महल बनता है,
आशिको के मरने पर कफ़न भी नहीं मिलता,
और हसीनो के मरने पर ताजमहल बनता है,

कांटो का बिछौना....

आगोश-ऐ-तन्हाई में सोना चाहता हूँ,
जीतकर भी सब खोना चाहता हूँ,
दम घुट रहा है सिसकियो में,
जी भर के रोना चाहता हूँ,
ख्वाहिशें नहीं जन्नत में आशियाने की,
मैं तो उनके दिल में एक कोना चाहता हूँ,
बने जो कल दरख़्त-ऐ-मोहोब्बत,
बीज वो दिलों में बोना चाहता हूँ,
भटका के साहिल से जो ले आई है भंवर तक,
खुस उस कश्ती को मै डुबोना चाहता हूँ,
रात करवटों में गुज़रे वो फूलों की सेज क्या,
नींद आ जाये वो कांटो का बिछौना चाहता हूँ....

मोहब्बत के काबिल बना दो....!!!!!

हर किसी के प्यार से कुछ अलग सा प्यार तुम मुझे सिखा दो,
सबसे जुदा होकर तुम सिर्फ मेरी धडकनों में खुद को समा दो,
मेरी आँखों से अपनी पलकों को कुछ इस तरह तुम मिला दो,
मेरी हाथो की लकीरों को अपने हाथो से तुम मिटा दो,
अपनी धडकनों को मेरी दिल की धड़कन भी तुम बना दो,
तुम बस किसी तरह मुझे अपने मोहब्बत के काबिल बना दो....!!!!!

मुझसे बिछड़ कर रोती होगी

मुझसे बिछड़ कर रोती होगी,
ग़म को कितना समझती होगी,
जिन राहों पर चलती होगी,
मेरी याद में तड़पती होगी,
मुझसे जो ना कह सकती थी,
अब वो खुद से कहती होगी,
गुजरी बातें गुज़रे लम्हें,
याद कर के वो रोती होगी,
फुर्सत तुम को हो के ना हो,
ख़त फ़िर भी लिखती होगी,
और लिख के,जलाने से कुछ पहले,
उन को वो खुद भी पढ़ती होगी.....