Friday, September 24, 2010

मोहब्बत में इम्तिहान आ गया........

मोहब्बत में क्या इम्तिहान आ गया,
रोज हँसते हुए चेहरे को उदास बना दिया,
कभी लुटाते थे हम मोहब्बत यूंही,
आज उन्होंने हमे ही मोहब्बत में लुटा दिया

हो नहीं सकता.....

हो नहीं सकता मुझे तेरी याद ना आये,
भूल के भी तुझे भूलूँ वो एहसास ना आये,
तू भूले तो तेरी मर्ज़ी,
मैं भूलूँ तो अगली साँस ना आये..

याद आता है....

हर रात एक नाम याद आता है,
कभी सुबह कभी शाम याद आता है,
जब सोचता हूँ के कर लूँ दूसरी मोहब्बत,
फिर पहली मोहब्बत का अन्जाम याद आता है...

मेरा नहीं पराया था

मुझे खबर थी वो मेरा नहीं पराया था,
पर धडकनों ने उसी को ख़ुदा बनाया था,
मैं खवाब-ख्वाब जिसे ढूंढता फिरा बरसों,
वो अश्क-अश्क मेरी आँख में समाया था,
तेरा कसूर नहीं जान,मेरी तन्हाई,
ये रोग मैंने ही,खुद जान को लगाया था |

फिर याद आई वो.....

अब के यूँ दिल को सजा दी हमने,
उस की हर बात भुला दी हमने,
एक,एक फूल बहुत याद आया,
शाख़-ऐ-गुल जब वो जला दी हमने,
आज तक जिस पे वो शरमाते हैं,
बात वो कब की भुला दी हमने,
शाह-ऐ-जहाँ राख से आबाद हुआ,
आग जब दिल की बुझा दी हमने,

आज फिर याद बहुत आई वो,
आज फिर उसको दुआ दी हमने,
कोई तो बात है उसमें "जनाब"
हर ख़ुशी जिस पे लुटा दी हमने....

अपनी मोहब्बत का सहारा दे दे कोई......

मेरे सुकून को लौटा दे कोई,
इन लरजते होंठो से मुस्कुरा दे कोई,
बहुत दर्द समां रखा इस सीने में,
दवा बनकर इस दर्द को मिटा दे कोई,
मुझे भी मुस्कुराने की तमन्ना है बहुत,
इस ग़म के समुन्दर में खुशियाँ ला दे कोई,

तन्हा चलते-चलते अब थक गया हूँ मैं,
सफ़र के इस तन्हाई को आकर मिटा दे कोई,
जीने के लिए मेरे पास यादों के सिवा कुछ नहीं,
मरने के लिए अपनी मोहब्बत का सहारा दे दे कोई......

Thursday, September 23, 2010

दोस्ती करने का शौक.....

क्या खबर थी,मार देगा ज़िन्दगी करने का शौक,
मुझको तनहा कर गया है दोस्ती करने का शौक,
वो  मेरी औकात जुगनू के बराबर भी नहीं,
पर है सूरज से ज्यादा रोशनी करने का शौक,
जब से चूमा है जबीं ने आप की दहलीज़ को,
मेरे दिल में भर गया है बंदगी करने का शौक,
जाने किस बरसात की मकरूज़ हैं आँखें मेरी,
हो गया है बारिशों की पैरवी करने का शौक....

इस शहर के लोगों ने.....

आदत ही बना ली है इस शहर के लोगों ने,
अन्दाज बदल लेना, आवाज़ बदल लेना,
दुनिया की मोहब्बत में अतवार बदल लेना,
मौसम जो नया आये रफ़्तार बदल लेना,
अग्यार वही रखना एहबाब बदल लेना,
आदत ही बना ली है इस शहर के लोगों ने,
रास्ते में अगर मिलना नज़रों को झुका लेना,
आवाज़ अगर दूं तो कतरा के निकल जाना,
आर एक से जुदा रहना हर एक से खफा रहना हर एक से गिला करना
जाते हुए राही को मंजिल का पता दे कर रास्ते में रुला देना,
आदत ही बना ली है इस शहर के लोगों ने.....

हाथों की लकीरों से.....

अपने हाथों की लकीरों से मिटा दूं तुझको,
कैसे मुमकिन  है की मैं ऐसे दगा दूं तुझको,
सोचता हूँ मैं किसी पल भुला दूं तुझको,
अपनी यादों से किसी रोज़ मिटा दूं तुझको,
तू ना मिल पाए मुझे ऐसी दुआ दूं तुझको,
हौसला होता नहीं दगा-ऐ-वफ़ा दूं तुझको,
मरे दामन में अंधेरों के सिवा कुछ भी नहीं,
ये किसी रोज़....किसी रोज़ बता दूं तुझको,
ऐतबार-ऐ-दिल-ऐ-आवारा नहीं है मुझको,
इस धड़कन में भला कैसे कैसे बसा दूं तुझको,
आगसी लगती है सीने में शब्-ओ-रोज़ खलिश,
ये ना हो खुद भी जलूं और जला दूं तुझको......

काश........

हमारे तो हर अलफ़ाज़ में होता था प्यार,
काश तुम दो लफ्ज़ ही कह पाते,
बीच हमारे होती थी कितनी बातें,
काश तुम कुछ का मतलब भी समझ पाते,
तुम्हें बातों ही बातों में,
हर बात कह जाते,
किसी का तुम काश दर्द ही जान जाते,
कितने बहानों से किया इज़हार,
कही बस तुम इकरार ही कर पाते,
हम तो थे तैयार चलने को पूरी ज़िन्दगी,
काश तुम कभी दो कदम बढ़ाते !!!!

आंखे सच बोल जाती है....

ना जाने क्यो वो मुझसे मुस्कुरा कर मिलती है,
अंदर के सारे गुम छुपा कर मिलती है,
आंखे सच बोल जाती है शायद,
इसलिये आंखे झुका कर मिलती है......

अभी सोये हैं.....

उन्हें तो फुर्सत नहीं मिलने की हमसे,
और हमारा वक़्त गुजरता है उनकी फ़रियाद करके,
अगर आये वो मेरी मौत पर,
तो कह देना अभी सोये हैं हम तुम्हे याद करके |

मेरे हक में दुआ नही करते........

दर्द उठता है मगर आंह नही करते,
कौन कहता है के हम वफ़ा नहीं करते,
आखिर क्यूँ नहीं बदलती तकदीर मेरी,
क्या मेरे दोस्त मेरे हक में दुआ नही करते |

इस जुदाई में.....

सुना होगा बहुत तुमने,
कहीं आँखों की रिम झिम का,
कहीं पलकों की शबनम का,
पढ़ा होगा बहुत तुमने,
कहीं लहजे की बारिश का,
कहीं सागर के आंसू का,
मगर तुमने कभी हमदम,
कहीं देखा ? कहीं पढ़ा ?
किसी तहरीर के आंसू,
मुझे तेरी जुदाई ने,
ये मिराज बक्शी है,
के मैं जो लफ्जो में लिखता हूँ,
वो सारे लफ्ज रोते है,
के मै जो हर्फ़ बुनता हूँ,
वो सारे बातें करते हैं,
मेरे संग इस जुदाई में,
मेरे अल्फाज भी मरते हैं !!

हसीनो के मरने पर ताजमहल बनता है....

उन्होंने कभी अपना बनाया ही नहीं,
झूठा ही सही प्यार दिखाया ही नहीं,
गलतियाँ अपनी हम मान भी जाते,
पर क्या करे कसूर हमारा हमें बताया ही नही,
हजारों झोपड़ियाँ जलकर राख होती हैं,
तब जाकर कहीं एक महल बनता है,
आशिको के मरने पर कफ़न भी नहीं मिलता,
और हसीनो के मरने पर ताजमहल बनता है,

कांटो का बिछौना....

आगोश-ऐ-तन्हाई में सोना चाहता हूँ,
जीतकर भी सब खोना चाहता हूँ,
दम घुट रहा है सिसकियो में,
जी भर के रोना चाहता हूँ,
ख्वाहिशें नहीं जन्नत में आशियाने की,
मैं तो उनके दिल में एक कोना चाहता हूँ,
बने जो कल दरख़्त-ऐ-मोहोब्बत,
बीज वो दिलों में बोना चाहता हूँ,
भटका के साहिल से जो ले आई है भंवर तक,
खुस उस कश्ती को मै डुबोना चाहता हूँ,
रात करवटों में गुज़रे वो फूलों की सेज क्या,
नींद आ जाये वो कांटो का बिछौना चाहता हूँ....

मोहब्बत के काबिल बना दो....!!!!!

हर किसी के प्यार से कुछ अलग सा प्यार तुम मुझे सिखा दो,
सबसे जुदा होकर तुम सिर्फ मेरी धडकनों में खुद को समा दो,
मेरी आँखों से अपनी पलकों को कुछ इस तरह तुम मिला दो,
मेरी हाथो की लकीरों को अपने हाथो से तुम मिटा दो,
अपनी धडकनों को मेरी दिल की धड़कन भी तुम बना दो,
तुम बस किसी तरह मुझे अपने मोहब्बत के काबिल बना दो....!!!!!

मुझसे बिछड़ कर रोती होगी

मुझसे बिछड़ कर रोती होगी,
ग़म को कितना समझती होगी,
जिन राहों पर चलती होगी,
मेरी याद में तड़पती होगी,
मुझसे जो ना कह सकती थी,
अब वो खुद से कहती होगी,
गुजरी बातें गुज़रे लम्हें,
याद कर के वो रोती होगी,
फुर्सत तुम को हो के ना हो,
ख़त फ़िर भी लिखती होगी,
और लिख के,जलाने से कुछ पहले,
उन को वो खुद भी पढ़ती होगी.....