Tuesday, November 30, 2010

मेरे इश्क का फ़साना.......

मुझ से वफ़ा निभाना तेरे बस में नहीं जाना,
दो फूल भी सजाने मेरी क़ब्र पर ना आना,
मेरे इश्क की हकीकत तुमने कभी ना समझी,
मेरे बाद याद करना मेरे इश्क का फ़साना,












दिल में बसाते हैं सब, तुम्हें रूह  में था बसाया,
तुम ने ही बदल डाला मेरी रूह का ठिकाना,
एक इल्तेजा है तुम से है छोटी सी गुजारिश,
सब कुछ ही याद रखना बस मुझ को भूल जाना,
सिला मांगता हूँ उन से जो खुद ही हैं सवाली,
मुझे क्या सिला देगा ये बेरहम ज़माना |

Monday, November 15, 2010


















क्यों रखूँ मैं अब अपनी कलम में स्याही,
जब कोई अरमान दिल में मचलता ही नहीं,
न जाने क्यों सभी शक़ करते हैं मुझ पर,
जब कोई सुखा फूल मेरी किताब में मिलता ही नहीं,
कशिश तो बहुत है मेरे प्यार में,
मगर क्या करूँ एक पत्थर दिल पिघलता ही नहीं,
अगर खुदा मिले तो उस से अपना प्यार माँगूंगा,
मगर सुना है वो मरने से पहले मिलता ही नहीं |

Friday, November 12, 2010

जनाज़ा....

तेरे बिना ये दिल नहीं मानेगा,
तुझसे जुदा रहूँ ये दिल नहीं चाहेगा,
तेरे साथ बीते हर पल की कसम,
अब आ जाओ वरना मेरा जनाज़ा जायेगा |

बेवफा होना ज़रूरी हो गया है....

मोहब्बत से रिहा होना ज़रूरी हो गया है,
मेरा तुझसे जुदा होना ज़रूरी हो गया है,
वफ़ा के तजुर्बे करते हुए तो उम्र गुजरी,
ज़रा सा बेवफा होना ज़रूरी हो गया है,
मेरी आवाज़ तन्हाई में मरती जा रही है,
किसी का हमनवां होना ज़रूरी हो गया है,
भंवर में है कई बरसों से अपनी कश्ती-ऐ-जान,
किसी का नाखुदा होना ज़रूरी हो गया है |

रात जुदाई की.....

अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की,
तुम क्या समझो तुम क्या जानो बात मेरी तन्हाई की,
कौन स्याही घोल रहा था वक़्त के बहते दरिया में,
मैंने आँख झुकी देखी है आज किसी हरज़ाई की,
वस्ल की रात ना जाने क्यों इस्रार था उनको जाने पर,
वक़्त से पहले डूब गए तारों ने बड़ी रुसवाई की,
उड़ते-उड़ते आकाश का पंछी दूर उल्फत में डूब गया,
रोते-रोते बैठ गयी आवाज़ किसी सौदाई की |

औरत है ज़हर की पुड़िया.....

जवान हो या बुढ़िया, या नन्ही सी गुड़िया,
कुछ भी हो, औरत है ज़हर की पुड़िया,
मरे पिस्तोल से ना मरे तलवार से,
मर्द को गुलाम बनाये बड़े प्यार से,
कभी इकरार से तो कभी इनकार से,
नैनो के श्रींगार से तो कजरे की धार से,
जवान हो या बुढ़िया, या नन्ही सी गुड़िया,
कुछ भी हो, औरत है ज़हर की पुड़िया,
चलने में तेज़ जैसे घड़ियाल की,
लाये ये खबर निकाल के पाताल की,
कच्ची है कान की तो झूठी है जुबान की,
काली हो या गोरी ये बर्बादी है इंसान की,
जवान हो या बुढ़िया, या नन्ही सी गुड़िया,
कुछ भी हो, औरत है ज़हर की पुड़िया,
चार आने झगडा,आठ आने लफ्ड़ा,
झूठ बोले बारह आना,सोलह आना लफड़ा,
हो नहीं सकता ये काम भगवान का,
नक्शा जरूर होगा ये तो किसी शैतान का,
जवान हो या बुढ़िया, या हो नन्ही सी गुड़िया,
कुछ भी हो, औरत है ज़हर की पुड़िया |


AUTHOR - UNKNOWN

Saturday, November 6, 2010

अज़ीयत से मुझको भुलाया होगा.....

कितनी अज़ीयत से उसने मुझको भुलाया होगा,
मेरी यादों ने उसको ख़ूब रुलाया होगा,
बात बे बात यूंही आँख जो उसकी भरी होगी,
उसने चेहरे को बाजुओं में छुपाया होगा,
सोचा होगा उसने दिन में कई बार मुझको,
नाम रेत पर लिख कर मेरा मिटाया होगा,
जहाँ मेरा ज़िक्र सुना होगा उसने किसी से,
उसकी आँखों में आंसू तो आया होगा,
होके निढाल मेरी यादों से तुने जाना,
मेरी तस्वीर पर सर टिकाया होगा,
रात के भीगने तक नींद नहीं आई होगी तुझे,
पूछा होगा जो किसी ने तेरी हालत का सबब,
तुने बातों में उसे ख़ूब छुपाया होगा |

मेरी मोहब्बत हो तुम.......

भीगे गुलाब जैसी खुबसूरत हो तुम,
जो भी हो जाना मेरी मोहब्बत हो तुम,
ख्वाबों में आ के मीठे सपने दिखाके,
मुझे आने वाले सुनहरे लम्हे दिखाके,
क्या कोई परी की जैसी शरारत हो तुम ?
जो भी हो जाना मेरी मोहब्बत हो तुम ||

यादों में लिख गए अशारो जैसे,
प्यार में सजाये हुए ग़ज़लों जैसे,
क्या लिखें जो सुनहरी ख्यालात हो तुम,
जो भी हो जाना मेरी मोहब्बत हो तुम,
तेरी बातों में वो चासनी हाय रब्बा,
दिल मेरा उनमें बस डूब जाये रब्बा,
क्या मेरे लिए बस एक बरसात हो तुम,
जो भी हो जाना मेरी मोहब्बत हो तुम ||

चेहरे से जो ज़ाहिर है वो छुपाऊँ कैसे ?
तुझसे कितनी मोहब्बत है ये बताऊँ कैसे ?
क्या मेरे दिल की ही सिर्फ रियासत हो तुम ?
जो भी हो जाना मेरी मोहब्बत हो तुम ||

भाता नहीं कोई चेहरा बस तेरे सिवा,
कोई नहीं दीवाना तेरा एक मेरे सिवा,
क्या फुर्सत से तराशी गयी मूरत हो तुम,
जो भी हो जाना मेरी मोहब्बत हो तुम ||

जहाँ भी जाऊं जिधर भी जाऊं मैं,
महफिलों में खुद को तन्हा पाऊँ मैं,
क्या मेरी ज़िन्दगी की अब जरुरत हो तुम ?
जो भी हो जाना मेरी मोहब्बत हो तुम ||

जो भटक जाऊं कहीं आ जाना राहों में,
ले जाओ मंजिल पे भर के बाँहों में,
क्या मेरी हर जुस्तजू-ऐ-ताक़त हो तुम ?
जो भी हो जाना मेरी मोहब्बत हो तुम ||

ज़ेह्नसीब हूँ मैं जो पाया तुझ को,
हर सू हर लम्हा सिर्फ चाहा तुझको,
क्या खुदा की मुझ पे की रहमत हो तुम ?
जो भी हो जाना मेरी मोहब्बत हो तुम ||

और क्या कहू तुमसे जान-ऐ-तमन्ना,
तुम ही हो सिर्फ मेरी दिल-ऐ-तमन्ना,
क्या ज़िन्दगी से लगायी हुई शर्त हो तुम ?
जो भी हो जाना मेरी मोहब्बत हो तुम ||

जो करी मुजाहिद नहीं वो इबादत हो तुम,
हाँ मेरी जाना मेरी मोहब्बत हो तुम
मेरी मोहब्बत हो तुम, मेरी मोहब्बत हो तुम ||

Wednesday, November 3, 2010

अगर वो मेहरबाँ होती....

अगर वो मेहरबाँ होती तो मेरी आँखें ना झिलमिल होती,
ना मेरे दिल की वादी में खिज़ां का काफ़िला रुकता,
अगर वो मेहरबाँ होती,मेरी बेनूर आँखों में सितारे कैद कर देती,
मेरी ज़ख़्मी हथेली पर वो एक फूल रख़ देती, 
मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर,
वो ये कहती......
मोहब्बत रौशनी है,रंग है,खुशबू है,सितारा है,
कसम मुझको मोहब्बत की मुझे तू सबसे प्यारा है,
मगर ऐसा वो तब कहती अगर वो मेहरबाँ होती |

हमे प्यार कीजिये.....

बस इतनी सी इनायत मुझ पर एक बार कीजिये,
कभी आ के मेरे ज़ख्मों का दीदार कीजिये,
हो जाइये बेगाने आप शौक से सनम,
आपके हैं आपके रहेंगे ऐतबार कीजिये,
पढने वाले ही डर जाएँ देख कर इसे,
किताब-ऐ-दिल को ना इतना दागदार कीजिये,
ना मजबूर कीजिये,के मैं उनको भूल जाऊं,
मुझे मेरी वफ़ाओ का ना गुनहगार कीजिये,
इन जलते दीयों को देख कर ना मुस्कुराइए,
ज़रा हवाओं के चलने का इंतज़ार कीजिये,
करना है इश्क आपसे करते रहेंगे हम,
जो भी करना है आपको मेरे सरकार कीजिये,
फिर सपनो का आशियाँ बना लिया है मैंने,
फिर आँधियों को आप ख़बरदार कीजिये,
हमे ना दिखाइए ये दौलत ये शोहरत,
हम प्यार के भूखे हैं हमे प्यार कीजिये |

अब तेरी बातें दिल में उतरती नही.....

क्या करूँ अब कोई भी अच्छा नहीं लगता मुझे,
तू भी पहले की तरह अपना नही लगता मुझे,
अब तेरी बातें दिल में उतरती ही नही,
तू वो ही है पर तेरा लहजा नही लगता मुझे,
तू तो अब बदन से साथ चलती है मेरे,
तेरे शानों पे तेरा चेहरा नहीं लगता मुझे,
तू कभी तकसीम करती थी हवाएं चारसू,
अब तेरे पास एक झोंका नहीं लगता मुझे,
अब लिफाफे से तेरी खुशबू नहीं आती मुझे,
ख़त भी तेरे हाथ का लिखा नहीं लगता मुझे |

कहाँ से सीख ली तुमने, अदा मुझ को भुलाने की.....

कभी तो लौट कर आओ, मुझे बस इतना समझाओ,
कहाँ से सीख ली तुमने, अदा मुझे को भुलाने की ?
तुम्हें जो मुझसे शिकवा था, या कोई भी शिकायत थी
ज़हमत तो ज़रा सी थी, ना कोशिश की बताने की
भला यूं छोड़ कर अपना कोई, अपनों को जाता है ?
दुःख की बारिश में, जीवन भर रुलाता है ?
अभी भी रेत गीली है, अभी सब नक्श बाकि हैं
गए क़दमों पे लौट आओ, मुझे बस इतना समझाओ
कहाँ से सीख ली तुमने, अदा मुझ को भुलाने की ??