Wednesday, October 6, 2010

बाज़ी-ऐ-इश्क हारे यारों......

बाज़ी--इश्क कुछ इस तरह से हारे यारों,
ज़ख़्म पे ज़ख़्म लगे दिल पर हमारे यारों,
कोई तो ऐसा हो जो घाव पर मरहम रखे,
यूं तो दुश्मन ना बनो सारे के सारे यारों,
बज़्म में सिर को झुकाए हुए जो बैठे हैं,
इन को मत छेड़ो ये हैं इश्क के मारे यारों,
जिन में होते थे कभी मेहर--वफ़ा के मोती,
इन जी आँखों में सितम के हैं शरारे यारों,
दोस्त ही अपने जो करने लगे नजर--तोफां,
काम नहीं आते फिर कोई सहारे यारों,
संग गैरों ने जो मारे तो कोई दुःख ना हुआ,
मर गए तुम ने मगर फूल जो मारे यारों,
वो जो रहा दिल गीर तुम्हारी खातिर,
तुम ने क्या-क्या नहीं ताने उसे मारे यारों.....

No comments:

Post a Comment