Thursday, September 23, 2010

हाथों की लकीरों से.....

अपने हाथों की लकीरों से मिटा दूं तुझको,
कैसे मुमकिन  है की मैं ऐसे दगा दूं तुझको,
सोचता हूँ मैं किसी पल भुला दूं तुझको,
अपनी यादों से किसी रोज़ मिटा दूं तुझको,
तू ना मिल पाए मुझे ऐसी दुआ दूं तुझको,
हौसला होता नहीं दगा-ऐ-वफ़ा दूं तुझको,
मरे दामन में अंधेरों के सिवा कुछ भी नहीं,
ये किसी रोज़....किसी रोज़ बता दूं तुझको,
ऐतबार-ऐ-दिल-ऐ-आवारा नहीं है मुझको,
इस धड़कन में भला कैसे कैसे बसा दूं तुझको,
आगसी लगती है सीने में शब्-ओ-रोज़ खलिश,
ये ना हो खुद भी जलूं और जला दूं तुझको......

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